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Thursday, April 29, 2010

इन gaddaarron को

मेरा देश महान है....
गद्दारों को दूध पिलाता ------
जन मन पर लाठी बरसाता-----
खुब कसाव को dhoodh pilatey
biriyani murga bhi khilatey ।
अफजल गुरू के ठाठ निराले ....
खाते देशद्रोह के निवाले ------
माधुरी गुप्त एक नया नाम है
देशद्रोह इनका भी काम है....
इनका भी अब बंदन होगा।
जेल मे नित अभिनन्दन होगा।
सेवा होगी इनकी भी नेता इनको करें सलाम...
अपना देश है कितना महान......
फआंसी होंअ नामुमकिन है॥
इनेहेय maarnaa naa मुमकिन है॥
इनके सेवा हमारी शहं ॥
अपना देश है कितना महान...
जी ...हाँ... हम सभी को अपने देश के कर्णधअरूण के इन कृत्यों... से बहुत कोफ़्त है......... सत्तापुछ...उस्सेसेय जियादा विपकच्छा ........ दोनों ही इतनी बेसरम है ....हमारी भारतमाता ने सोचह भी नहीं था। इस्वर से प्रर्थन है की इन्नेहेय सादबुद्धि दे....ताकि हमारा देश...बच सके...

हे राम......

Wednesday, April 28, 2010

आह्लाद ओर विषाद

अंधकार के बाद आता है प्रकश ......
और इशी प्रकाश में समाया है हमारे अंतर
का dard vinayash ......
yehi vinayash vismrit
kara deta है कुछ अपूर्व यादगार पल ----
ऐसे ही मै भूल गया अपनी बिटिया के गठबंधन की
पवित्र वर्ष गाँठ !
मैं भूल गया उसे अलसुबह बधाई देना।
नहीं याद रहा उसे कहना ......
अमर रहे अहिवात तुम्हारा.......
मधु मय हो दिन रात तुम्हारा......
करो सदा तुम पति की सेवा......
पति दे तुमको हर पल मेवा.....
हो संतोष सदा ही मन में -----
हो निरोग दोनों के तन में -------
बनो यशस्वी तुम दोनों ही
पाओ लछ्य सभी दोनों ही ।
मन में कलुष न किंचित ही हो
सबको प्रेम सदा तुम दो ............
नेह प्रेम सबसे ही तुम लो...........

shubkamnayen.......... papa....

Tuesday, April 27, 2010

प्रीति के अक्छर लिखे हैं जो सुनहरे ह्रदय पट पर ,

धो न देना तुम unehe bus ghar ka ek kona samjh kar ।

वर्णमाला प्रेम की likhna kathin hai।

pusp upharon के bhi देना kathin hai।

geet के hi बंद जब अनुबंध होंगे,

hum सुनायेंगे तुमहे kya swar sajakar।

Monday, April 26, 2010

उनके नाम .

तुम सहारा थी मेरी यह कहा ठा कभ्ही
बात यह कुछ समझ में न आई हमेयें ।
साथ मजधार मे छोड़ कुर तुम गयी
वादा यह भी समझ मे न आया हममें '
मेरे साथी बुल्लाओ हममे भी वहां
काम पूरा लिया केर बहुत kउच्च
शादी बेटी की bhi है sirf होनी अभी s
बेटे की भी है सिर्फ होनी अभी ।
mआय आकेला ना रूह सकूँगा एहन
हर पल हर चन में तुम हेर जहन्न मे हो तुम
आसमा मे हो तुम इस धरती पे भी तुम ।
माएं भी हू तुम और वह भी है तुम । ॥

किसे छितिज मे खोज रहा हूँ

आज दूसरी पुण्य तिथि की पूर्व सांध्य है ......मुझे याद आ रही वह कृशकाय , हताश वेदनामयी जीवन से निराश काया जो अभी जीना चाहती थी , हसना चाहती थी, हमारा सहारा बने रहना चाहती थी , जो देखना चाहती थी अपनी छोटी बिटिया की शेष जीवन की कभी न मिटने वाली मुस्कान , जो खिलाना चाहती थी अपनी बड़ी बिटिया की संतान को, जो अपने नाती या नातिन को दुलारना चाहती थी । जो अपने नाती या नातिन को उसके पापा या mउम्मी द्वारा कुछ डाटने ये मारने पर उन दोनों को डाटने की कल्पना करती थी ... उस दिन अपने कमरे से बहार तक आने के लिए असहाय थी ...... मुझे आज भी पश्चाताप है ....आतुम्ग्लानी है की ठीक उसके परायण से पहले की पूर्वसंध्या पर द्दत्ता था ....उस दिन हमने कहा था की तुम नाटक बहुत करती हो .... अपने कमरे से बहार के कमरे तक डॉक्टर द्वारा दी गयी सलाह को नहीं मानती हो ....आऊओ जल्दी से चल्लो... उड़ दिन सुच मे उनेह्हेय ५ मत की दुरी तय करने में आधा घंटा लगा था। बहार वाले कमरे मे कुर्सी पर बठकर भी वह सुम्हल नहीं प् रही थी ॥ जल्दी ही वह ठुक गयी ....मुझे नहीं मालूम था की यह थकन उनकी जिंदगी की आहीरी थकान है । उस दिन यानि २६-४-२००८ को रात्रि मे उनका इसी जी भी करवाया सब कुछ ठीक ठाक बताया गया। लेकिन उनका चेहरा कह रहा था कुत्च भी ठीक नहीं है...... मेरी अआखो में उनकी हालुत देख कर कई बार अंशू आ जाते थे...
माएं साम को भगवंत ऋ के पास जाकर उनके लिए प्रर्थनअ करता था। उसी रत को साम श्रीमती सिहं आई थी ...उनको वह पहचान नहीं पा रही ... थी। ........
मेरी सबसे प्यारी .....अपनी पत्नी दो बेयियों की माँ ......अब नही है यह माएं कासे कहूँ... वह हर समय मेरे साथ रहती है ....लडती है...झगड्थी है......दुलराती है... मेरे खाने ....के लिए जैसे तब वह चिंतित रहती थी अब भी है । वह कभी मुझको बहुत काहित tही अब कुत्च नहीं कहती है.........तुम जहाँ भी हो कुश रहो.......येही उनकी कामना है । बस आज इतना ही।

Thursday, April 22, 2010

हवा के रुख संग न बह सका मैं , किनारे मुझको bula रहे थे

थी आंधियां दर्मिएने मेरे पता जो उनका बता रहे थे ।

लुटा दिया अपनी ही धरोहर कभी था जिसपे नाज मुझको ,

उसी के गम में बातकर हम दिल को रोना सिखा रहे थे ।

हुई

Tuesday, April 20, 2010

स्पंदन कुत्च aise ही........

संबोधन जितने सच्चे थे उतना सच्चा प्यार नहीं था ।
नेह निमंत्रण जितने पाए उनमे कोई सार नहीं था ॥
मन वीणा के तार सुनहरे ,
हमने छेड़े स्वर आने को ।
देखा स्वप्न सुनहरे कल का
तारे नभ से भर लाने को ॥
उद्बोधन जितने मीठे थे उतना प्यार दुलार नहीं था ।
नेह निमंत्रण जितने पाए उनमे कोई सार नहीं था ॥

Monday, April 19, 2010

भावनाएं और यथार्थ क्या स्वार्थ के पूरक हैं

भावनाओं ka प्रवाह vयक्ति के मानश को उथल पुथल की कगार पर पहुच सकता है । वास्तव में प्राणी इस संसार में जब आता है उस समय उसका मानस पटल एक कोरे कागज की तरह होता है परन्तु ज्यों ज्यों वह माया तथा माया जनित स्वार्थो के घेरे में पड़ता जाता है त्यों त्यों वह एकाकी एवं स्वार्थी सा होता जाता है। उसे एन सब बोटों से मतलब नहीं होता है की उसके कृत्य अथवा विचारों एवं मत का कुप्रभाव उसके अपने पर क्या पड़ेगा। उसे केवल और केवल अपने दुर्गमे हितो के प्रभावित हनी की ही एकमात्र चिंता रहती है । संयोगवश यदि आपके पास achal सम्पति है तो उपरोक्त कथन आप पर शतप्रतिशत सत्य होगा। यहाँ तक की आपके अपने ह्रदय के tउकडे aaपके हितो की उपेछा करने में किंचित भी नहीं हिचकेंगे keyonke aapke hit unkey niji स्वार्थो को प्रभावित करते हैं। ऐसे में हमे भावनात्मक होकर नहीं अपितु yathart के dhartal पर vastavikta /avasyakta/ doogami परिणामों को ध्यान में ही रखकर कदम बढ़ाना चाहिए।

बस इतना ही...अपने को ....

Tuesday, April 13, 2010

OUR EXPECTATION & FRUSTRATIN .

NOW DAYS WE ARE RUNNING NOT ALIKE HUMAN BEING ...BUT RENNING AS A MACHINE . WE HAVE NO TIME TO SHARE SENTIMENTS OF OUR OTHER FAMILY MEMBER .. EVEN COUPLS ARE PERFORMING THEIR LIVE LIKE A MACHINE. PERSON BECAME SO DEARER TO EARN MONEY THEY ARE ALSO ENGAGE THEMSELVES TO NEGOTIATE ABT ONLY JOBS ,,,,,,,SALARY .....CONSUMER FRIENDLY LUXRIES... YES THEY WANT TO PURCHASE TOP LUXRY ITEMS WITHOUT THEIR SUITABLE REQUIREMENT. IF THESE THINGS ARE NOT BEING FULFILED THEY CREATES DISPUTE IN THEIR LOVELY LIVES. FULFULING OF THE DESIRE NEEDS MONEY .. MONEY CAN ONLY BE EARN WITH THE HELP OF SOME EXCELLENT JOB. SEARCHING OF THE JOB IS NOT EVEN AN EASY TASK. IF ANY OF THE MEMBER SHOW HIS /HER ENABILITY THEN OTHER ONE BECOMS ANGRY . ALWAYS IT IS NOT A BAD THING . SOME TIMES IT MOTIVATES SECOND PERSON TO BE HONEST TOWARDS HER/HIS SEARCH. BUT DAILY AFFAIRES OF THIS TYPE BECOMES BORING AND CAUSE OF FRUSTRATION AND MUTUAL DISPUTE. I WOULD LIKE TO SUGGEST THAT EVERYONE SHOULD DO THEIR BEST TOSEARCH THE BEST AND COMPARATIVE BETTER JOB. BUT NOT ON A COST OF THEIR PEACE. NATIURE PROVIDES EVERY ONE AS PER THEIR CAPACITY AND NEEDS. BUT NEEDS ARE GOING TO BE ENDLESS . BESIDES THERE ARE SOME OTHER PROBLEMS ARE RUNNING EVERYONE S L IFE .. ALL OF U KNOW I LOST MY BELOVED WIFE ... REALLY I HAVE MUCH SORROW.. BUT IF I WOULD ALWAYS REMAIN IN THAT TRAUM THEN MY LIFE CAN ALSO BE PASSED.... I HAVE TO LIVE FOR SOCIEY... FOR MY CHILDREN...FOR MYSELF ... WHAT EVER GOD HAS PROVIDED i HAVE TO ACCEPT .. BUT ATTEMPTS FOR BETTERMENT ALWAYS CREATS NEW PATH OF JOURNEY OF LIFE. ..... WE MUST ENJOY THIS JOURNEY BY SINGING , DANCING,,,,HELPING... AND MORE OVER MAKING POSITIVE CRATIONS... LIKE PAINTING.. CO MPOSING POEMS..STORY WRITING.. YOGO... DANCING.. IT PRACTISING.. SPORT.. ETC. WHEN THERE IS DESIRE THEN THERE IS WAY .. BUT NOT ON A COST OF STRESS..
i HAVE SAID EVERYTHING ॥ HOPE THAT READERS WILL CONSIDER TO FOLLOW....
VANCHHNAYEN सभी Kओ नहीं मिलती है
कल्पनाये मगर रहती जीवित सदा
दे विधाता नहीं Lअच्य केवल येही कर्म करते रहें हम यो ही सदा।

Friday, April 9, 2010

in dono ko...

मेरी बेटी
मेरी बेटी , कुछ-कुछ पागल सी ,अपनी सरलता के साथ ,मासूम प्रतिमा सी लगती है।है वह बहुत कुछ हठीली जिद्दी सी ,पर बातों के अपनत्व से ,मात्र प्रतिमूर्ति सी लगती हैवह खुश रहना चाहती है ,अपने घर की दुनिया में ,खिलौनों के छोटे संसार में।बाहर निकलने से बहुत घबराती है ,बड़ों की बड़ी दुनिया में ,परिचित-अजनबी चेहरों के बीच ,वह अचानक सहम सी जाती है ,शायद वह अकेली हो जाती है।खिलौनों के संग खेल में ,अक्सर जिद करती है अजीब सी ,साथ मेरे बात करो , दौड़ो-भागो ,खिलौनों से ऐसा वह कहती है।पर कोई भी बात नहीं करता ,मौन और गहरा जाता है ,मेरी बेटी शायद गुस्सा हो जाती है ,हर खिलौना तोड़ देना चाहती है ,और थोड़ी देर बाद ,खिलौनों को पुनः सहेज कर ,बिखराव मिटा देना चाहती है ,अक्सर यह घटना दोहराई जाती है।यह देखकर मैं कहने लगता हूं ,बेटे , ऐसा कभी होता नहीं ,अच्छा अब हंस दो तुम ,तू मुस्कराती अच्छी लगती है।मेरी बेटी समझने की कोशिश में ,और उलझनों में डूबी सी ,ऐसा सचमुच नहीं होता है ?यह प्रश्न मुझसे पूछती है ,मैं स्वयं उलझ जाता हूं ,उत्तर तलाशने लगता हू।अच्छा , मुझको गुड़िया बना दो न ;वह स्वयं उत्तर तलाश लेती है।उसकी उलझनों के आगे ,समझदारी व्यर्थ प्रतीत होती है।उसको गोद में लेकर थपकी देकर ,सुला देना चाहता हूं।शायद जागने पर वह, यह यक्ष प्रश्न भूल जाए ,और हंसती-खेलती-मुस्कराती रहे सदा , मेरी बेटी।। ( this is not written by me ....experienced )

Wednesday, April 7, 2010

apni badki bitiya se ...

dearest Betu...& kapil....
I have no words to begin blog which is required to be posted by me .. I m continuously thinking and thinking since yesterda... I quiestion ...to Almighty ... what is the extent of patience... what is the ethic of survival . what are the meaning of shubh and ashubh.. why those who are not doing holy things they are getting everything and contradactory who are doing the all act of kindness they are being crushed. History shows that Bhagwan Rama , Harishchra etc had done every thing as per the expectation of Vedas , Shruti and religion but all of them have been tested . Those were very great ... we people are related with this bhautik jagat ....and bearing no cosmic power even then we are being made the target of test. .....My wife expired...I remained silent ...I tried to ask these quetion which have also been replied by the almighty but now my children are being tested . I can only prey to God please exempt them from your hard test. please rain ur kindness.. Destiny is nothing except the desire of God. Desires of God probably made on the basis of assessment of act of human being ....specially who are living on earth. In this way i tried to recall that I have did nothing which may be treted immoral. Ihave never crussed any body .. contadractory i have tried to facilate all the needy person as per my capacity...Then why My Great God u r testing my innocent children...why are u not helping .. o...God ...please rain ur kindness.

vk.

Sunday, April 4, 2010

स्वामी रामदेव एवं उनका अभियान

मित्रों !
स्वामी रामदेव ,युग ki तमसमई रात्रि के उदीयमान सूर्य है। bह्रास्ताछार , दमन , annayay, mahilasoshan aadi ki kuruitiyon ka patachep karney ki ekmatra sambhavanayen unihi me dekhi ja sakti hai. aisey byakti ka rajneeti meyn pravesh nischaya hi swagat yogya hai. unka videsho meyn jama dhan ke vapsee ki ghosana yadi vastava mey sahi sabit hogi to yeh des ekbar phir soney ki chidiya kahlaney se koi nahi rok sakta hai.

Thursday, April 1, 2010

लिख दिया है कुछ भी यों ही ब्लॉग लिखते लिखते

कुछ असमंजस ऐसे होते जिन पर निर्णय बहुत कठिन है ,
कुछ प्रतिबंध भी होते ऐसे जिन से भगना बहुत कठिन है ।
मन उतावला जब होता है बाधाएं तब छोटी लगती ,
तर्क वितर्क के गठबंधन में सीमायें सब छोटी लगती
घोस गूंजना विद्रोही का इस समाज में बहुत कठिन है ॥
नीतिशास्त्र की रांह में चलकर कहीं पे थकना बहुत कठिन है।
बस इतना ही ...........