तुम्हारी प्रीति के अक्छर हमारे ह्रदय पटपर
अंकित है एक शिलालेख की तरह
इन अक्छरों को उकेरने की पीड़ा का उपहार
संजोया है हमने एक धरोहर की मानिंद
जिसकी हिफाजत में बिताये पल
देते हैं हमे एक अनुपम आनंद
इन अक्छ्रोयुए को प्रणाम .
jo bhi kuch likhta hoon ' ushey samarpit karta hoon. apna bhi mantabya likhen kuch yehi prarthna karta hoon.
Monday, May 31, 2010
Tuesday, May 25, 2010
उनको जो नहीं है मेरे साथ
भाव आते रहे भाव जाते रहे ,
हम तुम्हारे बिना क्यों यहाँ रह गए ।
करता निर्माण हूँ इक घरौंदे का फिर ,
ईट गार्रों में आंसू भी है मिल गए।
सोचता हूँ की दीवार वह कौन सी ,
स्वप्न जिसमे tumhaarey धरे रह गए ।
खंड भू का तुम्हरा है अन्दर मेरे ,
चित्र जिस पर तुम्हारे बने रह गए।
गृह के हर द्वार में बजके पायल तेरी ,
मेरे कानो में स्वर गूंजते रह गये .
यह तुम्हारा तुम्ही को समर्पित प्रिये ,
कल्पना लोक में स्वप्न सजते रहे ।
होगा पूरा नहीं यह तुम्हारे बिना ,
मेरे साथी बताओ कहाँ तुम गए ।
आना होगा माये जब भी बुलाऊं तुम्हे ,
तार वीणा के उर में सजाते रहे.
हम तुम्हारे बिना क्यों यहाँ रह गए ।
करता निर्माण हूँ इक घरौंदे का फिर ,
ईट गार्रों में आंसू भी है मिल गए।
सोचता हूँ की दीवार वह कौन सी ,
स्वप्न जिसमे tumhaarey धरे रह गए ।
खंड भू का तुम्हरा है अन्दर मेरे ,
चित्र जिस पर तुम्हारे बने रह गए।
गृह के हर द्वार में बजके पायल तेरी ,
मेरे कानो में स्वर गूंजते रह गये .
यह तुम्हारा तुम्ही को समर्पित प्रिये ,
कल्पना लोक में स्वप्न सजते रहे ।
होगा पूरा नहीं यह तुम्हारे बिना ,
मेरे साथी बताओ कहाँ तुम गए ।
आना होगा माये जब भी बुलाऊं तुम्हे ,
तार वीणा के उर में सजाते रहे.
Monday, May 24, 2010
एक गीत .
भाव दीप को आज जलाकर तम समेट लूं तेरे मन का ,
सूर्य रश्मियाँ जहाँ न पहुचें ज्योतिर्मय कर दूं उस तन का ।
यह श्रंगार नहीं कहता है तेरा मैं स्पर्स करूँ,
कहती पवन किन्तु CHALKARKE THODA MAYN UTKARS BHAROON.
सूर्य रश्मियाँ जहाँ न पहुचें ज्योतिर्मय कर दूं उस तन का ।
यह श्रंगार नहीं कहता है तेरा मैं स्पर्स करूँ,
कहती पवन किन्तु CHALKARKE THODA MAYN UTKARS BHAROON.
Wednesday, May 19, 2010
अपने अपने पल
छड़ो को युगों में बदलते देखा
पर नहीं बदला तुम्हारा रूप
तुम तब भी थे याचक और आज भी
तुम्हे बस मांगते पता हूँ .....
तुमने कभी तीन पग धरती मांग ली
कभी तुमने माँगा किसी माँ से उसके बेटे का कफ़न ।
तुम्हरे मांगने के प्रयोजन भी थे विचित्र ,'
कभी तुमने जो भी माँगा परिक्च्चा के नाम पर
अथवा माँगा दाता को उसे सुधारने के नाम पर .....
यह मांगना कितना ही इस्स्व्रीय हो ॥
लेकिन दाता के लिए हमेसा यह बहुत भरी पड़ा...
तुम हमें छद्म से दूर रहेने की सिक्चा देते आये हो
फिर क्या किये इतने सारे छद्म ....
प्रभु होने के मुखौटे तुम्हारी ही तरह येह बहुत से सत्ताधारी भी लगते है
वह भी लेने लगे है हमारा इम्तिहान ....अभी इन इम्तिहानो पर बगावत होना बाकि है।
बाकि है ।
अब मेरे प्रभु तुम कम से कम हमारा और कोई इम्तिहान न लो।
न लो .....बस.
विष्णु कान्त मिश्र।
पर नहीं बदला तुम्हारा रूप
तुम तब भी थे याचक और आज भी
तुम्हे बस मांगते पता हूँ .....
तुमने कभी तीन पग धरती मांग ली
कभी तुमने माँगा किसी माँ से उसके बेटे का कफ़न ।
तुम्हरे मांगने के प्रयोजन भी थे विचित्र ,'
कभी तुमने जो भी माँगा परिक्च्चा के नाम पर
अथवा माँगा दाता को उसे सुधारने के नाम पर .....
यह मांगना कितना ही इस्स्व्रीय हो ॥
लेकिन दाता के लिए हमेसा यह बहुत भरी पड़ा...
तुम हमें छद्म से दूर रहेने की सिक्चा देते आये हो
फिर क्या किये इतने सारे छद्म ....
प्रभु होने के मुखौटे तुम्हारी ही तरह येह बहुत से सत्ताधारी भी लगते है
वह भी लेने लगे है हमारा इम्तिहान ....अभी इन इम्तिहानो पर बगावत होना बाकि है।
बाकि है ।
अब मेरे प्रभु तुम कम से कम हमारा और कोई इम्तिहान न लो।
न लो .....बस.
विष्णु कान्त मिश्र।
Tuesday, May 18, 2010
श्ट्ठे शात्थ्यम शमाच्रेट
छ्मासीलता की सीमा है आगे कायरता की द्योतक ,
इस मग के अनुगामी को bn jaati है yeh avrodhak ।
geeta mey updesh yehi है duston का उप्छार अपेछित,
अत्त्याचारी शमन जरूरी रामायण भी इसकी पोषक ।
yehi maankr hum sbko भी अपने हैं आदर्श बदलना,
शुभता के रक्च्क बन अन्नायाई का दमन है करना ।
जो बातों मे मधु भरता है पर अंदर से हो वह बिषधर सा ,
लिखता जो सूक्तियां सलोनी कर्म करे जो नित दानव सा ।
झूठे आरोपों का प्रमादी भोला बनकर जो दिखता है ,
वर्नाछार से ही जो भ्रामक मानक जो गढ़ता हो ।
मन तन से अपनी बीमारी भाषा वाणी मे रचता हो ,
जो प्रपंच के नूतन किस्से पन्नों में भी लिख रखता हो ।
छमा पात्र वह क्यों हो सकता एइसा है सिद्धांत न कोई ,
काटेगा वह फसल खेत की जैसे जितनी है वह बोई ।
आदर्शों की परिभासा में दुस्त छमा का पात्र नहीं है ,
आतंकी को दंडित करना किसी रूप में पाप नहीं है ॥
इस मग के अनुगामी को bn jaati है yeh avrodhak ।
geeta mey updesh yehi है duston का उप्छार अपेछित,
अत्त्याचारी शमन जरूरी रामायण भी इसकी पोषक ।
yehi maankr hum sbko भी अपने हैं आदर्श बदलना,
शुभता के रक्च्क बन अन्नायाई का दमन है करना ।
जो बातों मे मधु भरता है पर अंदर से हो वह बिषधर सा ,
लिखता जो सूक्तियां सलोनी कर्म करे जो नित दानव सा ।
झूठे आरोपों का प्रमादी भोला बनकर जो दिखता है ,
वर्नाछार से ही जो भ्रामक मानक जो गढ़ता हो ।
मन तन से अपनी बीमारी भाषा वाणी मे रचता हो ,
जो प्रपंच के नूतन किस्से पन्नों में भी लिख रखता हो ।
छमा पात्र वह क्यों हो सकता एइसा है सिद्धांत न कोई ,
काटेगा वह फसल खेत की जैसे जितनी है वह बोई ।
आदर्शों की परिभासा में दुस्त छमा का पात्र नहीं है ,
आतंकी को दंडित करना किसी रूप में पाप नहीं है ॥
Friday, May 14, 2010
yeh बुन्दूकेयं..... ( थेसे गुंस.)
वह एक बुद्धिजीवी था......
गलती से वह एक बन्धूक रखता है ....
उससे अपनी बन्धूक पर बहूत भरोसा है ....
उससे अपने सब्द कमजोर लगते हैं ...
मैने कहा.....
सब्द गोलियों की बौछार तुमाहरी गोली की मार से कई गुना तेज हैं...
वाकई उस्सने मेरी सलाह पर गौर फ़रमाया॥
औउर उसने गोली बाद में चलाने की धमकी देता हुआ ....
गालियोंओ की बौछार चला दी .....
'' तुम लंगड़े हो ....
अभी तुम्हरी दोनों पैर नहीं हैं
स्साले tउम्हरे दोनों हाँथ भी kaat doonga....
मुझे घर से बुन्धूक लानी होगी ...
तुम्हारी नानी याद आजायेगी.....
मुझे लगा यह बुद्धिजीवी महासय क्या कर रहे है॥
यो तो सूरज को थूक क्रर डरा रहे हैं...
मैने निवेदन किया ...
यह सब्द कुछ जियादा ही तेज हैं...
या तो इनेहेय कुछ और पैना kअरू ...
अथवा इन्नेहेय भूल jआओ ...
अन्ग्रेजून के पास बंधूक और तोपें भी तो थी....
पर गाँधी यानि हमारे बाप्पू क्या कभी उन से दरे थे।
वह तो उनसे बिहा हथियार ही लादे थे।
लेकेन उसे इस time dhn की sakhta जर्रोरत है॥
पत्नी के इलाज के लिए...
घर निर्माण के लिये॥
अब वह जा चूका है॥
वह बहुत अच्छा है ॥
लेकिन दिमाग से थोडा कच्चा है।
मेरी उस्सेसे हुम्दारी है
नहीं कुछ भी उसके लिए बेदर्दी है।
उसके बिगत बुद्धिजीवी कृत्य को सलाम
उसके अंतर बैठे दर्द को प्रणाम।
इस्वर से प्रर्थन है ॥
बुद्धिजीवी को बन्धूक जीवी hओने से bचाओ वह आदमी था आदमी ही रहे ...
उसे हिन्सुक पशुओं की प्रजाति मे जानने bअचाऊ।
गलती से वह एक बन्धूक रखता है ....
उससे अपनी बन्धूक पर बहूत भरोसा है ....
उससे अपने सब्द कमजोर लगते हैं ...
मैने कहा.....
सब्द गोलियों की बौछार तुमाहरी गोली की मार से कई गुना तेज हैं...
वाकई उस्सने मेरी सलाह पर गौर फ़रमाया॥
औउर उसने गोली बाद में चलाने की धमकी देता हुआ ....
गालियोंओ की बौछार चला दी .....
'' तुम लंगड़े हो ....
अभी तुम्हरी दोनों पैर नहीं हैं
स्साले tउम्हरे दोनों हाँथ भी kaat doonga....
मुझे घर से बुन्धूक लानी होगी ...
तुम्हारी नानी याद आजायेगी.....
मुझे लगा यह बुद्धिजीवी महासय क्या कर रहे है॥
यो तो सूरज को थूक क्रर डरा रहे हैं...
मैने निवेदन किया ...
यह सब्द कुछ जियादा ही तेज हैं...
या तो इनेहेय कुछ और पैना kअरू ...
अथवा इन्नेहेय भूल jआओ ...
अन्ग्रेजून के पास बंधूक और तोपें भी तो थी....
पर गाँधी यानि हमारे बाप्पू क्या कभी उन से दरे थे।
वह तो उनसे बिहा हथियार ही लादे थे।
लेकेन उसे इस time dhn की sakhta जर्रोरत है॥
पत्नी के इलाज के लिए...
घर निर्माण के लिये॥
अब वह जा चूका है॥
वह बहुत अच्छा है ॥
लेकिन दिमाग से थोडा कच्चा है।
मेरी उस्सेसे हुम्दारी है
नहीं कुछ भी उसके लिए बेदर्दी है।
उसके बिगत बुद्धिजीवी कृत्य को सलाम
उसके अंतर बैठे दर्द को प्रणाम।
इस्वर से प्रर्थन है ॥
बुद्धिजीवी को बन्धूक जीवी hओने से bचाओ वह आदमी था आदमी ही रहे ...
उसे हिन्सुक पशुओं की प्रजाति मे जानने bअचाऊ।
Tuesday, May 11, 2010
मेरा मन उस जैसा.....
मन बिहंग के इस आँचल मे सारा छितिज है बौना बौना ,
दौडे यह हर उस कोने मे दिखता जिधर भी कोई खिलौना ॥
सभी खिलौने होते नस्वर PR अभिलासभिलाषाओं के VIRAT पग
चलते चलते कभी न थकते आतुर भरते हैं विशाल डग ।
इन्नेहेय रोकना नहीं सरल है किन्तु असम्भव नहीं है कुछ भी ,
वल्गाओं की डोर थाम हम रोक सकेंगे वेगित रथ भी ।
इछाओं को दमन नही बस करें नियंत्रण केवल उन पर
सब कुछ ही सामान्य रहेगा देखो इन पर थोडा चलकर ॥
दौडे यह हर उस कोने मे दिखता जिधर भी कोई खिलौना ॥
सभी खिलौने होते नस्वर PR अभिलासभिलाषाओं के VIRAT पग
चलते चलते कभी न थकते आतुर भरते हैं विशाल डग ।
इन्नेहेय रोकना नहीं सरल है किन्तु असम्भव नहीं है कुछ भी ,
वल्गाओं की डोर थाम हम रोक सकेंगे वेगित रथ भी ।
इछाओं को दमन नही बस करें नियंत्रण केवल उन पर
सब कुछ ही सामान्य रहेगा देखो इन पर थोडा चलकर ॥
Wednesday, May 5, 2010
क्या kahoon
कभी कभी जब कोई पुरुष भी राकचस सा bn जाता है....
अपनी कुटिल कृत्य वाणी का रौद्र रूप वह दिखलाता है.......
तब तब मन की कालिख उसके मुह पर brबस आ जाती है
दोहरे मापदंd की माया उसके ऊपर chha jaati है । l
saavdhan aise logon से सबको ही अब रहना होगा -
बिषधर को साथी चुन्नेनी से हमको अब बचना होगा.
अपनी कुटिल कृत्य वाणी का रौद्र रूप वह दिखलाता है.......
तब तब मन की कालिख उसके मुह पर brबस आ जाती है
दोहरे मापदंd की माया उसके ऊपर chha jaati है । l
saavdhan aise logon से सबको ही अब रहना होगा -
बिषधर को साथी चुन्नेनी से हमको अब बचना होगा.
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