जेस्थ का बड़ा मंगल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बड़े मंगल के रूप में मनाया जाता है . कदाचित सम्पूर्ण भारत में इसे उत्सव के जिस रूप में मनाये जाने की आल्हादकारी परम्परा लखनऊ में देखी जाती है जन मन के भावो को प्रतिबिंबित करते इस स्वरूप को हम प्रणाम करते है. लखनऊ की हर गर्लिवों, सरकों, मोहल्लों तथा मंदिरों में कही प्यासों को मठ सरबत पिलाया जा रहा है तो कही पुरियां और नुक्तियों का भोज बनता जा रहा है . कही कही तो बड़े बड़े पकवानों का भी वितरण हो रहा है. पिछले मंगल को किये गए एक सर्वे के अनुशार लखनऊ में इस प्रकार के छोटे बड़े इस्तालों की संख्या जो ज्येस्ठ के बड़े मंगल पर लगते है वह लगभग ३८७६ है . यह संख्या केवल लखनऊ नगर की ही है इसमें बक्षी का तलब और इतौन्जा , काकोरी की संख्य शामिल नहीं है . इन स्टालों पर बिना किशी भेद भाव हर वर्ग ,समुदाय, जाति, धर्म को प्रदान की जाति है . इन स्टालों पर प्रसासनिक अधिकारी, नेता रिक्शा चालक मजदूर सभी जाना और प्रसाद लेना पसंद करते हैं . यह प्रसाद प्रभु बजरंग बली के जन्म दिवस पर वितरित होता है . यह परम्परा मुस्लिम बद्षाओं के समय से चली आ रही है . वाजिदअली शाह के समय से चली आ रही है . प्रारंभ उशी ने किया था. इस अवसर पर काव्य पुष्प की एक पंखुरी राम भक्त हनुमान को समर्पित है.....
भय मुक्त करे जो समाज को
दीं हीन का उद्धार करे
ऐसे हनुमान को बार बार
ही हम पुकार करें.
jo bhi kuch likhta hoon ' ushey samarpit karta hoon. apna bhi mantabya likhen kuch yehi prarthna karta hoon.
Tuesday, June 15, 2010
Thursday, June 10, 2010
aspandan
अस्पन्दन क्रंदन है मेरा भाव भूमि की भाषा में .
तिमिर संजोयें हमने केवल कुछ पाने की आशा में .
प्राप्ति कठिन kuch सुलभ है देना जो भी मेरे पास धरा है.
अस्म्रितियों पर नहीं दे शकूं मिलने की प्रत्याशा में.
तिमिर संजोयें हमने केवल कुछ पाने की आशा में .
प्राप्ति कठिन kuch सुलभ है देना जो भी मेरे पास धरा है.
अस्म्रितियों पर नहीं दे शकूं मिलने की प्रत्याशा में.
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