jo bhi kuch likhta hoon ' ushey samarpit karta hoon. apna bhi mantabya likhen kuch yehi prarthna karta hoon.
Friday, December 31, 2010
Friday, December 17, 2010
ab tk aaj 10-30 am
स....... आज भी रोज की तरह उठा हूँ ...थोडा अलसाया था..आज ब्यायाम कुछ ज्यादा ही किया है ...नहाने धोनी के बाद रोज की ही तरह पूजा कर भगवान को याद करने का ढोंग किया है . ढोंग ही कह सकते हैं क्योकि मन तो असांत रहता है . मेरा नौकर गैस लेने गया है भूखा तो नहीं कह सकता परन्तु एक कप चाय से पेट के अंदर कूदते चूहे मानने वाले नहीं हैं. बेटी कालेज जा चुकी है. ------बस बेटा ब्लॉग लिखते रहो...मेरी पत्नी जब जीवित थी तब कहा करती थी की मेरे न होने पर पता चलेगा.. सही था..विकल्प खोजने में परिवार की इतनी वर्जनाएं हैं की उसे अमली जमा पहनने में बहुत झंझट हैं
Thursday, December 16, 2010
भारती के भाव विह्वल आंसुओ की याचना है
तुम कलम से विरह के अब गीत लिखना छोड़ दो
हास्य की यह रितु नही है एक केवल कामना है ,
तुम चरण चारण की अपनी बात करना छोड़ दो.
भ्रष्ट होते तन्त्र की ब्यथा पर अब कुछ लिखो ,
दर्द से होती तड़प की वेदना पर कुछ लिखो ,
चीर खोती द्रोपदी की नग्नता पर कुछ लिखो..
आतंक भ्रस्टाचार की इन गठरियों को खोल दो..
तुम कलम से विरह के अब गीत लिखना छोड़ दो
हास्य की यह रितु नही है एक केवल कामना है ,
तुम चरण चारण की अपनी बात करना छोड़ दो.
भ्रष्ट होते तन्त्र की ब्यथा पर अब कुछ लिखो ,
दर्द से होती तड़प की वेदना पर कुछ लिखो ,
चीर खोती द्रोपदी की नग्नता पर कुछ लिखो..
आतंक भ्रस्टाचार की इन गठरियों को खोल दो..
Tuesday, December 14, 2010
tmanna..
तमन्ना कैसे करिये मंजिलों की , हो जब पैरों में बेडी मरहलों की .
मोहब्बत अपनी भी परवान चढ़ती , कमी शायद थी हममे हौसलों की .
जमी ज्यों ज्यों सिमटती जा रही है लकीरें बढ़ रही हैं फासलों की .
हमेशा सींचती रहती है कांटे सियासत बात करती है गुलों की .
अदालत जब हो मरहूने सियासत कहाँ तक कद्र कीजे फैसलों की .
जुनूं फिर आजिमे दस्ते सफर है इलाही लाज रखना आंवलों की
सिफ़ा होगी हटो ए चारा साजों हवा आने दो माँ के आंचलो की .
मोहब्बत अपनी भी परवान चढ़ती , कमी शायद थी हममे हौसलों की .
जमी ज्यों ज्यों सिमटती जा रही है लकीरें बढ़ रही हैं फासलों की .
हमेशा सींचती रहती है कांटे सियासत बात करती है गुलों की .
अदालत जब हो मरहूने सियासत कहाँ तक कद्र कीजे फैसलों की .
जुनूं फिर आजिमे दस्ते सफर है इलाही लाज रखना आंवलों की
सिफ़ा होगी हटो ए चारा साजों हवा आने दो माँ के आंचलो की .
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