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Thursday, March 11, 2010

aspandan

ghatnaon ki asmritiyon se उठता man meyen krandan
hashaney का तो प्रसन nahi tha par vilap bhi kar na paya,
Bhook nahi thi par bhojan tha jisko maineyn kha na paya ,
दर्द के वीणा तार से निकला अंजुरी भर अस्पन्दन अँजुर भर अस्पन्दन अ।
कल के व्यथा लेख मेँ हमने दर्द का दुस्तावेज भरा था ,
दर्द निवारक डाक्टर का कच्छा चिठा हमने खोला था ,
सरकारी ट्रौमा सेण्टर का नाटक की मजबूरी का हमने बस उल्लेख किया था
मन में जिससे उपजा क्रंदन।
दर्द के वीणा तार से निकले मेरे अंजुरी भर अस्पन्दन। मेरे अंजुरी भर अस्पन्दन

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