भाव भूमि के नए प्रष्ठ पर नूतन कविता लिखता हूँ .
नई तूलिका नए रंग से नया चित्र फिर गढ़ता हूँ .
तिरसठवां ये नया प्रष्ठ है भारत की आजादी का
भ्रस्टाचार का शीर्षक दे दूँ महंगाई बर्बादी का
सड़क नरेगा सिक्छा सबको चारों तरफ झुनझुना बजता
अस्पताल के द्वार पे budhiya तिल तिल कर रोज है मरता
छोटे से बुखार के बदले कैंसर का इलाज होता है
छोटा डाक्टर अपने को कैंसर का विज्ञ लिखता है.
छात्रा से विद्यालय मे बलात्कार का चलन हो रहा
आतंकवाद नक्सल हिंसा पर मुन्त्री गन का मनन हो रहा.
धर्म जाति की राजनीति पर मूल्ल्यों का हनन हो रहा
आजादी के पावन दिन पर थोड़ी कटुता कहता हूँ
भाव भूमि के नये प्रष्ठ पर नूतन कविता लिखता हूँ .
विष्णु कान्त मिश्र
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