वह एक बुद्धिजीवी था......
गलती से वह एक बन्धूक रखता है ....
उससे अपनी बन्धूक पर बहूत भरोसा है ....
उससे अपने सब्द कमजोर लगते हैं ...
मैने कहा.....
सब्द गोलियों की बौछार तुमाहरी गोली की मार से कई गुना तेज हैं...
वाकई उस्सने मेरी सलाह पर गौर फ़रमाया॥
औउर उसने गोली बाद में चलाने की धमकी देता हुआ ....
गालियोंओ की बौछार चला दी .....
'' तुम लंगड़े हो ....
अभी तुम्हरी दोनों पैर नहीं हैं
स्साले tउम्हरे दोनों हाँथ भी kaat doonga....
मुझे घर से बुन्धूक लानी होगी ...
तुम्हारी नानी याद आजायेगी.....
मुझे लगा यह बुद्धिजीवी महासय क्या कर रहे है॥
यो तो सूरज को थूक क्रर डरा रहे हैं...
मैने निवेदन किया ...
यह सब्द कुछ जियादा ही तेज हैं...
या तो इनेहेय कुछ और पैना kअरू ...
अथवा इन्नेहेय भूल jआओ ...
अन्ग्रेजून के पास बंधूक और तोपें भी तो थी....
पर गाँधी यानि हमारे बाप्पू क्या कभी उन से दरे थे।
वह तो उनसे बिहा हथियार ही लादे थे।
लेकेन उसे इस time dhn की sakhta जर्रोरत है॥
पत्नी के इलाज के लिए...
घर निर्माण के लिये॥
अब वह जा चूका है॥
वह बहुत अच्छा है ॥
लेकिन दिमाग से थोडा कच्चा है।
मेरी उस्सेसे हुम्दारी है
नहीं कुछ भी उसके लिए बेदर्दी है।
उसके बिगत बुद्धिजीवी कृत्य को सलाम
उसके अंतर बैठे दर्द को प्रणाम।
इस्वर से प्रर्थन है ॥
बुद्धिजीवी को बन्धूक जीवी hओने से bचाओ वह आदमी था आदमी ही रहे ...
उसे हिन्सुक पशुओं की प्रजाति मे जानने bअचाऊ।
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