कभी कभी जब कोई पुरुष भी राकचस सा bn जाता है....
अपनी कुटिल कृत्य वाणी का रौद्र रूप वह दिखलाता है.......
तब तब मन की कालिख उसके मुह पर brबस आ जाती है
दोहरे मापदंd की माया उसके ऊपर chha jaati है । l
saavdhan aise logon से सबको ही अब रहना होगा -
बिषधर को साथी चुन्नेनी से हमको अब बचना होगा.
1 comment:
शुद्ध लेखन की आवश्यकता है । रचना प्रशंसनीय ।
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