भारती के भाव विह्वल आंसुओ की याचना है
तुम कलम से विरह के अब गीत लिखना छोड़ दो
हास्य की यह रितु नही है एक केवल कामना है ,
तुम चरण चारण की अपनी बात करना छोड़ दो.
भ्रष्ट होते तन्त्र की ब्यथा पर अब कुछ लिखो ,
दर्द से होती तड़प की वेदना पर कुछ लिखो ,
चीर खोती द्रोपदी की नग्नता पर कुछ लिखो..
आतंक भ्रस्टाचार की इन गठरियों को खोल दो..
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