अपने अपने बीते वे कल आज पराये से लगते हैं.,
कभी हकीकत के किस्से ,बनकर सपने मे दिखते हैं .
उस पल को अब कहाँ भुलाये
जो खुद आज भुला बैठा है
वह निर्मोही याद आ रहा
सोकर जिसे जगा बैठा है .
फल उस पहले तरुवर के बहुत हमारे से लगते हैं,
कभी हकीकत के किस्से, बनकर सपने मे दिखते हैं
आओ थोडा सोते सोते
अब फिर से हम जग जाएँ
गत फिर से आगत होते
आओ उनको पास बुलाएँ
जो कुछ भी कह न पाए आज सुनाने वह लगते हैं
कभी हकीकत के किस्से, बनकर सपने मे दिखते हैं .
कभी हकीकत के किस्से ,बनकर सपने मे दिखते हैं .
उस पल को अब कहाँ भुलाये
जो खुद आज भुला बैठा है
वह निर्मोही याद आ रहा
सोकर जिसे जगा बैठा है .
फल उस पहले तरुवर के बहुत हमारे से लगते हैं,
कभी हकीकत के किस्से, बनकर सपने मे दिखते हैं
आओ थोडा सोते सोते
अब फिर से हम जग जाएँ
गत फिर से आगत होते
आओ उनको पास बुलाएँ
जो कुछ भी कह न पाए आज सुनाने वह लगते हैं
कभी हकीकत के किस्से, बनकर सपने मे दिखते हैं .
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