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Wednesday, May 5, 2010

क्या kahoon

कभी कभी जब कोई पुरुष भी राकचस सा bn जाता है....
अपनी कुटिल कृत्य वाणी का रौद्र रूप वह दिखलाता है.......
तब तब मन की कालिख उसके मुह पर brबस आ जाती है
दोहरे मापदंd की माया उसके ऊपर chha jaati है । l
saavdhan aise logon से सबको ही अब रहना होगा -
बिषधर को साथी चुन्नेनी से हमको अब बचना होगा.

1 comment:

अरुणेश मिश्र said...

शुद्ध लेखन की आवश्यकता है । रचना प्रशंसनीय ।