कवि ! लिखो कदाचित कुछ ऐसा -----
मन जिससे हर्षित हो जाये .
वाणी बने प्रेरणा सबकी ,
जन गन मन पुलकित हो जाये .
"धनिया"की पीड़ा भी दूर हो ,
होरी सब का मन बसिया हो .
बसुधैव कुटुम्बकम की धरती '
मानव मन की शुचि बगिया हो .
नैतिकता संकल्प बने
पथ भ्रष्ट निराश्रित हो जाये
साहित्य भरे जन मांस में
सरोकार सब मिल जाएँ ...
यह कविता नहीं है यह मेरा सभी साहित्यकारों ब्लॉगर लिखने वालों से अनुरोध है... हम सभी को आज के भ्रस्ताचार के बिरुद्ध खड़े हो जाना चाहिए. जय हिंद.
No comments:
Post a Comment