आज उसे बहुत दिनों के बाद
आखों में बसाया है
कल तक वह सपनों में आती थी
आज उसे फिर अपने करीब बुलाया है.
कभी उससे कहा था ------
तुमसे दूर चली जाउंगी
पास नहीं आउंगी .....
तुम्हारी नींदों को उड़ाऊँगी
तुम्हारे लिए रेगिस्तानी प्यास बन जाउंगी.
तुम्हे जी भर के सताउंगी-----
पर वह तो उसका नाटक था
इस धरती से जाने के बाद भी
वह अप्सरों सी स्वर्ग से उतर आती है.
उसकी यही अदा
मेरे अत्तीत की याद
भरपूर दिलाती है.------
बहुत दिनों के बाद.
4 comments:
Very nice poem...
बहुत बहुत सुन्दर
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.....
मार्मिक! जो देह के बन्धन से मुक्त हो गये वे तो कभी भी कहीं भी आ सकते हैं। टिकट, वीसा, ट्रैफिक, कोई भी झंझट उन्हें रोक नहीं सकता।
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