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Tuesday, March 1, 2011

bahut dino ke baad.

आज उसे बहुत दिनों के बाद
आखों में बसाया है
कल तक वह सपनों में आती थी
आज उसे फिर अपने करीब बुलाया है.
कभी उससे कहा था ------
 तुमसे दूर चली जाउंगी
पास नहीं आउंगी .....
तुम्हारी नींदों को उड़ाऊँगी
तुम्हारे लिए रेगिस्तानी प्यास बन जाउंगी.
तुम्हे जी भर के सताउंगी-----
पर वह तो उसका नाटक था
इस धरती से जाने के बाद भी
वह अप्सरों सी स्वर्ग से उतर आती है.
उसकी यही अदा
मेरे अत्तीत की याद
भरपूर दिलाती है.------
बहुत दिनों के बाद.




4 comments:

Unknown said...

Very nice poem...

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत बहुत सुन्दर

Sawai Singh Rajpurohit said...

मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.....

Smart Indian said...

मार्मिक! जो देह के बन्धन से मुक्त हो गये वे तो कभी भी कहीं भी आ सकते हैं। टिकट, वीसा, ट्रैफिक, कोई भी झंझट उन्हें रोक नहीं सकता।