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Monday, April 26, 2010

किसे छितिज मे खोज रहा हूँ

आज दूसरी पुण्य तिथि की पूर्व सांध्य है ......मुझे याद आ रही वह कृशकाय , हताश वेदनामयी जीवन से निराश काया जो अभी जीना चाहती थी , हसना चाहती थी, हमारा सहारा बने रहना चाहती थी , जो देखना चाहती थी अपनी छोटी बिटिया की शेष जीवन की कभी न मिटने वाली मुस्कान , जो खिलाना चाहती थी अपनी बड़ी बिटिया की संतान को, जो अपने नाती या नातिन को दुलारना चाहती थी । जो अपने नाती या नातिन को उसके पापा या mउम्मी द्वारा कुछ डाटने ये मारने पर उन दोनों को डाटने की कल्पना करती थी ... उस दिन अपने कमरे से बहार तक आने के लिए असहाय थी ...... मुझे आज भी पश्चाताप है ....आतुम्ग्लानी है की ठीक उसके परायण से पहले की पूर्वसंध्या पर द्दत्ता था ....उस दिन हमने कहा था की तुम नाटक बहुत करती हो .... अपने कमरे से बहार के कमरे तक डॉक्टर द्वारा दी गयी सलाह को नहीं मानती हो ....आऊओ जल्दी से चल्लो... उड़ दिन सुच मे उनेह्हेय ५ मत की दुरी तय करने में आधा घंटा लगा था। बहार वाले कमरे मे कुर्सी पर बठकर भी वह सुम्हल नहीं प् रही थी ॥ जल्दी ही वह ठुक गयी ....मुझे नहीं मालूम था की यह थकन उनकी जिंदगी की आहीरी थकान है । उस दिन यानि २६-४-२००८ को रात्रि मे उनका इसी जी भी करवाया सब कुछ ठीक ठाक बताया गया। लेकिन उनका चेहरा कह रहा था कुत्च भी ठीक नहीं है...... मेरी अआखो में उनकी हालुत देख कर कई बार अंशू आ जाते थे...
माएं साम को भगवंत ऋ के पास जाकर उनके लिए प्रर्थनअ करता था। उसी रत को साम श्रीमती सिहं आई थी ...उनको वह पहचान नहीं पा रही ... थी। ........
मेरी सबसे प्यारी .....अपनी पत्नी दो बेयियों की माँ ......अब नही है यह माएं कासे कहूँ... वह हर समय मेरे साथ रहती है ....लडती है...झगड्थी है......दुलराती है... मेरे खाने ....के लिए जैसे तब वह चिंतित रहती थी अब भी है । वह कभी मुझको बहुत काहित tही अब कुत्च नहीं कहती है.........तुम जहाँ भी हो कुश रहो.......येही उनकी कामना है । बस आज इतना ही।

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