jo bhi kuch likhta hoon ' ushey samarpit karta hoon. apna bhi mantabya likhen kuch yehi prarthna karta hoon.
हवा के रुख संग न बह सका मैं , किनारे मुझको bula रहे थे
थी आंधियां दर्मिएने मेरे पता जो उनका बता रहे थे ।
लुटा दिया अपनी ही धरोहर कभी था जिसपे नाज मुझको ,
उसी के गम में बातकर हम दिल को रोना सिखा रहे थे ।
हुई
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