युग पुरुष कहूँ तुमको
या कर्मयोगी ......
अथवा कहू अंत में भगवान
तुमने नैरास्य मे आशा की एक किरण दिखाई
अर्जुन को ....
द्रौपदी की लाज बचाई
सारथि बन तुमने
रथ की अश्वा वल्गाओं को थमा
अन्याय के शमन के लिए .....
प्रेम की पवित्रता
विरह का उत्सर्ग
राधा के नाम के साथ रहा है तुमसे ऊपर
बाबजूद सभी कुछ के
एक इसी कारन से मै
कर्म पुरुष को
इस्वर मानने को तैयार नहीं.
1 comment:
जोरदार रचना ।
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