कौन सा मै रूप देखूं कौन से तन को निहारूं ,
कौन छबि अन्तश मे भर लूं कौन अन्तश से बहारू ?
एक मन को मोहती है एक लोचन नीर बहती ,
एक के कुछ अधर बोलें एक है चितवन से कहती
कौन सा प्रतिबिम्ब उसका ह्रदय के पट पर संवारूं ?
मालिनी वह वाटिका की सुमन हैं उसकी धरोहर
कमलिनी को संग लेकर है प्रवाहित यह सरोवर .
कलश युग्मो मे सुनहरे दीप ज्योतिर्मय हुए है
भावना की बेल में कुछ पुष्प अब विकसित हुए हैं.
प्रेम या अनहद की आँखों से उसे कैसे निहारूं
1 comment:
जीवन धूप छाँव हैं ।
विसंगतियों का अनुभूत गीत ।
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