हम सब कितने लगे बेचारे.:-
उनको देखा इनको देखा थाली के बैगन से दिखते ,
कभी इधर हैं कभी उधर है सभी तरफ हैं जाते रहते .
मौसम बदला पाला बदला मुहं में नया निवाला बदला '
सब कुछ बदला लेकिन उनमे दुष्कर्मों का ढंग न बदला .
जिसको वह कल काला कहकर पानी पी पी कोष रहे थे ,
आज उसी से गले वह मिलकर बहियाँ डाले खील रहे थे .
राजनीत के चौराहे पर मित्रों सब कुछ हो जाता संभव
स्वार्थ और विजयी होने में सिधोनों की बात असंभव
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