भावों के कोरे कागज पर क्या कुछ मैं लिख कर दे पाउँगा.
अन्तश की यह विरह वेदना क्या तुमसे प्रिय कह पाउँगा ..
जब जब कुछ कहना चाहा है अधर बीच में रुक जाते हैं
आँखों की बहती धारा में स्वप्न सुनहरे आ जाते हैं.
कितना कठिन ब्यक्त कुछ करना अपने सच्चे उद्गारो को.
चाह चाह कर छिपा न paauun अंदर की इन मनुहार्रों को
छावों की इस बगिया में क्या दो पल में रुक पाउँगा .
भावों ..............
1 comment:
कह दो तभी काम बनेगा ।
प्रशंसनीय ।
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