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Tuesday, October 12, 2010

ek roop.

कौन सा मै रूप देखूं  कौन से तन को निहारूं ,
कौन छबि अन्तश मे भर लूं कौन  अन्तश से बहारू ?
एक मन को मोहती है एक लोचन नीर बहती ,
एक के कुछ अधर बोलें एक है चितवन से कहती
कौन सा प्रतिबिम्ब उसका ह्रदय के पट पर संवारूं ?
मालिनी वह वाटिका की सुमन हैं उसकी धरोहर
कमलिनी को संग लेकर है प्रवाहित यह सरोवर .
कलश युग्मो  मे सुनहरे दीप ज्योतिर्मय हुए  है
भावना की बेल में कुछ पुष्प अब विकसित हुए हैं.
प्रेम या अनहद की आँखों से उसे कैसे निहारूं

1 comment:

अरुणेश मिश्र said...

जीवन धूप छाँव हैं ।
विसंगतियों का अनुभूत गीत ।