jo bhi kuch likhta hoon ' ushey samarpit karta hoon. apna bhi mantabya likhen kuch yehi prarthna karta hoon.
Friday, December 31, 2010
Friday, December 17, 2010
ab tk aaj 10-30 am
Thursday, December 16, 2010
तुम कलम से विरह के अब गीत लिखना छोड़ दो
हास्य की यह रितु नही है एक केवल कामना है ,
तुम चरण चारण की अपनी बात करना छोड़ दो.
भ्रष्ट होते तन्त्र की ब्यथा पर अब कुछ लिखो ,
दर्द से होती तड़प की वेदना पर कुछ लिखो ,
चीर खोती द्रोपदी की नग्नता पर कुछ लिखो..
आतंक भ्रस्टाचार की इन गठरियों को खोल दो..
Tuesday, December 14, 2010
tmanna..
मोहब्बत अपनी भी परवान चढ़ती , कमी शायद थी हममे हौसलों की .
जमी ज्यों ज्यों सिमटती जा रही है लकीरें बढ़ रही हैं फासलों की .
हमेशा सींचती रहती है कांटे सियासत बात करती है गुलों की .
अदालत जब हो मरहूने सियासत कहाँ तक कद्र कीजे फैसलों की .
जुनूं फिर आजिमे दस्ते सफर है इलाही लाज रखना आंवलों की
सिफ़ा होगी हटो ए चारा साजों हवा आने दो माँ के आंचलो की .
Monday, November 29, 2010
बस दूसरों के दर्द पर मत मुस्कुराएये
वेदनाएं दूसरों की पास लाइए .
कांटा चुभा है उसके पैरो में जो अभी ,
आकरके अपने हाँथ से उसको निकालिए .
खुद के भी जख्म आप तब भूल जायेंगे,
आंसुओं को उसके जरा पोंछ डालिए.
यह भी न कर सकें तो इतना ही कीजिये ,
बस दूसरों के दर्द पर मत मुस्कुराएये
Thursday, November 4, 2010
deepawali ka bhav deep.....
जीवन ज्योति बिम्ब लहरा दे .
यशस्वी पर्वत मालाएं
कीर्ति ध्वजा ऊपर फहरा दे
दीपों का ये पर्व दिवाली
दर्द बाँटने आई दिवाली
करे 'श्री ' में ब्रधि दिवाली .
ब्लॉगर की इस दुनिया में
नूतन नव सन्देश रचा दे
पाठक गन के भावों में
नया स्वर्ण प्रकाश बहा दे.
Tuesday, November 2, 2010
aaoo hm sb deep jalayen..........
अँधियारा जो ब्याप्त है मन में
छिपा हुआ जो अंदर तन में
कलुषित सी उन स्वांशों से
कैसे हम सब दीप जलाएं .....
उस बखरी का दर्द तो जाने ....
जिस की बिटिया संग रेप हुआ था
जिस घर बहू को आग लगी थी ..
जिस घर डेंगू से बेटे का अंत हुआ था...
आतंकी के निर्मूलन में जिसका बेटा सहीद हुआ था..
उस माँ का दर्द भी जाने
जिसकी बिटिया बिनब्याही है...
उस पति की कसक भी समझे...
जिसकी पत्नी स्वर्ग सिधारी....
उस बहना को दर्द भी समझो...
जिस की माँ हैं स्वर्ग सिधारी...
इन सबके घर भी जाकर
इनका अन्तश दर्द मिटायें ..
तब सब मिलकर दिया जल्यें....
आओ हम सब दीप जलाएं .
Wednesday, October 27, 2010
naya muhavara.....
यात्री जो भोले भले हैं एक कोने में टंगे हुए हैं ....
नया मुहवरा ढूँढ़ ढूँढ़ कर मंजिल जब पाने वाला हूँ
चिंतन के चौराहे पर जाम के अंदर फसे हुए हैं.
Tuesday, October 26, 2010
SATRKTA SPTAH....
जब शपथ दिलाई जा रही थी ....
हमे झूट मूठ की बातें बताई जा रही थी
केंद्रीय परिपत्र सुनाया जा रहा था
यानि की हमे भूला पाठ पद्य जा रहा था .
हमे अचानक ही याद आने लगी सब्जीमंडी ....
वही पर मिले थे अपने " कल्मांडी "
क्रत्रिम रसायनों से बनी लौकियाँ बीच रहे थे ....
शीलाएं, गिल और रेड्डी भी उन्नेह देख रहे थे ----
मैने पूछा....रस्त्र्मंडल से क्या अभी थके नहीं हो. ...
क्या अभी किसी पड़ाव पर रुके नहीं हो...
रुकने वाले मुर्ख होते है..
हम तो देश के खातिर बहुत कुछ धोते हैं ..
मावा,,ढूध घी के धंधे में बहुत से अपने ही बन्दों को लगाया है...
टूट्ठी सडको का यह स्वरूप हमारे ही लोगो ने बनाया है..
हम सच्चे रास्त्र सेवक हैं....
अपनी पहचान खुद बनाते हैं...
दूसरों को इसके लिये बिलकुल नहीं सताते हैं.
मुझे लगा इस सप्ताह का स्वरूप साकार हो गया.
भ्रस्ताचार पर कल्मंदियों का भरमार हो गया.,
Wednesday, October 13, 2010
apne gaon ka chunav.....
माने देखा अपने गाँव की चुनाव पूर्व हलचल
यहाँ पर पहले से अधिक हो गई है
ठर्रे की खपत
नार्तिकियाँ भी अलग अलग खेमो में
जन सेवा के लिए बुलाई जाती है ....
बुधिया ,नत्था ,गोबरे के लिए
रात को अब महफिल सजाई जाती है.
हमारे गाँव का सोनेलाल कल पीकर तुन था
उसने कल ही कहा था
की ओबामा से कह दो
कल यहाँ का चुनाव देखने आ जाएँ ..
ताकि यहाँ से कुछ सीख कर जाये ....
प्रत्याशी गन एक से बढकर चाले चल रहे हैं
नई महाभारत का एक नया इसलोक लिख रहे हैं.
कोन से प्रधान की पत्नी किसकी रखैल है
किसकी किस डकैत से पेलाम्पैल है..
पुलिश का कोन कितना दलाल है
थाने पर कोन कितना मचाता बवाल है.
पंचायत चुनाव इसकी अनूठी मिशल है.
Tuesday, October 12, 2010
ek roop.
कौन छबि अन्तश मे भर लूं कौन अन्तश से बहारू ?
एक मन को मोहती है एक लोचन नीर बहती ,
एक के कुछ अधर बोलें एक है चितवन से कहती
कौन सा प्रतिबिम्ब उसका ह्रदय के पट पर संवारूं ?
मालिनी वह वाटिका की सुमन हैं उसकी धरोहर
कमलिनी को संग लेकर है प्रवाहित यह सरोवर .
कलश युग्मो मे सुनहरे दीप ज्योतिर्मय हुए है
भावना की बेल में कुछ पुष्प अब विकसित हुए हैं.
प्रेम या अनहद की आँखों से उसे कैसे निहारूं
Monday, October 11, 2010
vaani hrday se hai tair lagaati...
न्याय का पन्थ सदा दिखलाती .
भक्ति की सरिता प्रवाह मयी तुम,
नाव को संत की पार लगाती.
दीन न हीन कभी रह पाता,
वाणी ह्रदय जब टेर लगाती.
Sunday, October 3, 2010
Ayodhya ........Nyay palika abhinandan.
लोकतंत्र भारत का जन गन तेरा भी शत शत अभिनन्दन .
राम रहीम के तुम हो बंसज गंगा यमुना की धारा हो
सम्प्रदाय की पशुता का नही बन सके तुम चारा हो .
दे उदारता का हम परिचय आपस में समझौता कर लें.
कठिन नही कुछ भी होने को यधि अंदर से इच्छा कर लें
नेताओं को दूर ही रक्खो चाहे किसी पार्टी का हो
सांप का बंसज इसको समझो चाहे किसी पार्टी का हो .
यह विवाद अब मिट जायेगा होगा सुखद सवेरा सुन्दर.
राम रहीम का भेद मिटेगा आता स्वर्ण विचार है अन्दर.
शुभ कामनाए .
विष्णुकांत.
Wednesday, September 29, 2010
hm ek hain.....
राम हो रहमान हो इन्सान ही होना सही
कितना कठिन हो फैसला मन्दिर या मस्जिद के लिए
भाई से पर भाई को बाँटना हमको नही .
कल अयोध्या पर फैश्ला आ रहा है ..... हमे अपनी न्याय पालिका पर पूरा यकीं करना चाहिए.यदि कही कुछ आपके मन का नहीं है तो आप न्यायिक रास्ता ही अपनायें----- किसी भी प्रकार से किसी को उत्तेजना या गलत रास्ता न तो अपनाएं और न ही उस पर चलने की अनुमति डे
जय हिंद.
Wednesday, September 22, 2010
kaise kuch bhi likh paunga.
अन्तश की यह विरह वेदना क्या तुमसे प्रिय कह पाउँगा ..
जब जब कुछ कहना चाहा है अधर बीच में रुक जाते हैं
आँखों की बहती धारा में स्वप्न सुनहरे आ जाते हैं.
कितना कठिन ब्यक्त कुछ करना अपने सच्चे उद्गारो को.
चाह चाह कर छिपा न paauun अंदर की इन मनुहार्रों को
छावों की इस बगिया में क्या दो पल में रुक पाउँगा .
भावों ..............
Thursday, September 16, 2010
aao hm sb saath raheyn....
बानर या मनुज सभी
न्याय हेतु लड़ो किन्तु
प्रेम को न भूलो अभी .......
शांति और प्रेम में
अकूत शक्ति है छिपी...
गाँधी ने भी यही शस्त्र
अहिन्षा के साथ लिया
शांति शौहद्र को ही साथ ले
मानव को इसी का अनूठा मंत्र दिया...
नये तूफ़ान का डर जो आज सता रहा.
सहन सकती सह अस्तित्व को न भूलू कभी..
शंकट की घडी में रास्ता यही बता रहा.
Wednesday, September 15, 2010
shok sndesh.
ॐ शांति शांति शांति..
Tuesday, September 14, 2010
aao mhimamai kalivinod ke liye kuch karen......
प्रभु कुछ करो मिटा दो उसके जीवन का संताप
सेवा पुण्य किया निरंतर किया कभी न कोई पाप
कष्ट उसे क्यों है अब इतना जिसने सबका कष्ट मिटाया
जिसने सबके आंसू पोचे उस परिवार को क्यों है रुलाया.
ॐ शांति शांति शांति........
hindi divas.
कबीरा तुलसी रसखान सूर बुन लो चाहे जितनी लड़ियाँ ..
भक्ति काल से लेकर अबतक हिंदी प्रवाह रस घोल रहा
अपनों से अपनी भासा में म्रदुता वाणी मन तौल रहा .
फिल्में हो या फिर कम्पूटर विश्व में हिंदी छाई है
नई उमंगो संग अपनी हिंदी दुनिया में आई है.
कीर्तिमान हिंदी के अब नई पताका बन फहरे
भाव भूमि की धरती पर उसके प्रभाव हों अति गहरे ...........
आओं आज हम संकल्प ले की हिंदी को अंग्रेगी का विकल्प बनायें. हिंदी दिवस पर हमारी सभी पथोको को हार्दिक शुबकामनाएं.
विष्णु कान्त मिश्र
Thursday, September 9, 2010
AN HUMBLE REQUEST...
भाव सुमन जो भी अर्पित हैं यह सब केवल तुम्हे समर्पित .
प्रतिक्रियाएं यदि कुछ मिलती उनको पढ़कर होता गर्वित.
मत सम्मति से कुछ सिखकर थोडा सा परिमार्जन करता
मूल्यवान भावो को पाकर अपने मन की गागर भरता...
करे अनुसरण अस्पंदन का भाव भरी मनुहार कर रहा ,
अभिनन्दन वंदन अर्चन यह तोतली वाणी से दे रहा ........
LOT OF THANKS. .......JAI HIND.
Tuesday, September 7, 2010
abhibyakti
कौन सा सम्वाद भर देगा ह्रदय मे चेतना.
कब तलक हम शब्द लेंगे दूसरो से उधार,
क्यों न कह दे तुम्ही से आज अपनी वेदना.
तुम यहाँ से मेरे मन की बात सुन सकती तो हो
कौन क्या कहता उसे तुम भूल सकती तो हो.
कब तलक हम दूर से ही मौन कुछ कहते रहेंगे
चिर दूरियों से ही सही तुम तो बुला सकती तो हो .
Saturday, September 4, 2010
sikchak diwas ..aapki pustak ka vimochan aur mera janm diwas.....
ON this occasion I would like to remember late Dr. G.D. Sarswat... who was my guru during my graduation and post graduation ... he had also written .SAMMICHHA OF SAID BOOK ANJURI BHAR ASPANDAN. He is no more....but I always felt his presence in my mind.
Fortunately ...today is my birthday.....I take a resolution to adopt the service of Hindi litrature as well as poor and handicapped people. because my self is also physically handicapped.
गुरु हमारे पथ प्रकाश ज्योति किरण तम राहों पर
परम वेदना दूर करे जो मरहम हैं हर घावों पर.
HAPPY TEACHERS DAY.
VK.
Friday, September 3, 2010
anjuri bhar aspndan ki vars ghanth
परमात्मा का थोडा अर्चन
शुभता का जिसमे है वंदन
भारत का उसमे अभिनन्दन
निजता का विलाप क्रन्दन
एक वर्स क हुआ आज
अपना '' अंजुरी iभर अस्पन्दन
सुधि पाठको तथा प्रिय जनों को बहुत बहुत धन्यवाद.... हमारी , यांनी आपकी इस किताब का विमोचन विगत वर्स ५ सितम्बर २००९ को किया गया था. तबसे १०० प्रतियाँ का बिकना तथा २० पुस्तकालयों द्वारा इसकी मांग आपके आशीष एवं स्नेह का ही प्रतीक है
vishnu
Thursday, September 2, 2010
karmyogi krishn
या कर्मयोगी ......
अथवा कहू अंत में भगवान
तुमने नैरास्य मे आशा की एक किरण दिखाई
अर्जुन को ....
द्रौपदी की लाज बचाई
सारथि बन तुमने
रथ की अश्वा वल्गाओं को थमा
अन्याय के शमन के लिए .....
प्रेम की पवित्रता
विरह का उत्सर्ग
राधा के नाम के साथ रहा है तुमसे ऊपर
बाबजूद सभी कुछ के
एक इसी कारन से मै
कर्म पुरुष को
इस्वर मानने को तैयार नहीं.
Thursday, August 26, 2010
ek bar phir.
नये घरौंदे बनने दो
इन्ही घरौंदों में कुछ अपना
ज्यादा तो है तेरा सपना.
इन सपनों को आने दो .......
जब तक सपने नहीं दीखते
लक्छ्य नहीं हैं तब तक मिलते
ल्क्च्या बिन्दुओं को पाने को
इन सपनों को आने दो .
Monday, August 16, 2010
bhav bhoomi ke naye prasth par
नई तूलिका नए रंग से नया चित्र फिर गढ़ता हूँ .
तिरसठवां ये नया प्रष्ठ है भारत की आजादी का
भ्रस्टाचार का शीर्षक दे दूँ महंगाई बर्बादी का
सड़क नरेगा सिक्छा सबको चारों तरफ झुनझुना बजता
अस्पताल के द्वार पे budhiya तिल तिल कर रोज है मरता
छोटे से बुखार के बदले कैंसर का इलाज होता है
छोटा डाक्टर अपने को कैंसर का विज्ञ लिखता है.
छात्रा से विद्यालय मे बलात्कार का चलन हो रहा
आतंकवाद नक्सल हिंसा पर मुन्त्री गन का मनन हो रहा.
धर्म जाति की राजनीति पर मूल्ल्यों का हनन हो रहा
आजादी के पावन दिन पर थोड़ी कटुता कहता हूँ
भाव भूमि के नये प्रष्ठ पर नूतन कविता लिखता हूँ .
विष्णु कान्त मिश्र
Saturday, August 14, 2010
swatantrta divs abhinandan
हिन्दू सिख मुस्लिम है तेरी सभी संताने करते नमन और करते तुमहे सलाम .
दिलों जां भी देकर के रक्छा करेंगे तेरी अहद आज करते हैं देते हम सभी बयां ..
Tuesday, June 15, 2010
hanuman jayanti.
भय मुक्त करे जो समाज को
दीं हीन का उद्धार करे
ऐसे हनुमान को बार बार
ही हम पुकार करें.
Thursday, June 10, 2010
aspandan
तिमिर संजोयें हमने केवल कुछ पाने की आशा में .
प्राप्ति कठिन kuch सुलभ है देना जो भी मेरे पास धरा है.
अस्म्रितियों पर नहीं दे शकूं मिलने की प्रत्याशा में.
Monday, May 31, 2010
Tuesday, May 25, 2010
उनको जो नहीं है मेरे साथ
हम तुम्हारे बिना क्यों यहाँ रह गए ।
करता निर्माण हूँ इक घरौंदे का फिर ,
ईट गार्रों में आंसू भी है मिल गए।
सोचता हूँ की दीवार वह कौन सी ,
स्वप्न जिसमे tumhaarey धरे रह गए ।
खंड भू का तुम्हरा है अन्दर मेरे ,
चित्र जिस पर तुम्हारे बने रह गए।
गृह के हर द्वार में बजके पायल तेरी ,
मेरे कानो में स्वर गूंजते रह गये .
यह तुम्हारा तुम्ही को समर्पित प्रिये ,
कल्पना लोक में स्वप्न सजते रहे ।
होगा पूरा नहीं यह तुम्हारे बिना ,
मेरे साथी बताओ कहाँ तुम गए ।
आना होगा माये जब भी बुलाऊं तुम्हे ,
तार वीणा के उर में सजाते रहे.
Monday, May 24, 2010
एक गीत .
सूर्य रश्मियाँ जहाँ न पहुचें ज्योतिर्मय कर दूं उस तन का ।
यह श्रंगार नहीं कहता है तेरा मैं स्पर्स करूँ,
कहती पवन किन्तु CHALKARKE THODA MAYN UTKARS BHAROON.
Wednesday, May 19, 2010
अपने अपने पल
पर नहीं बदला तुम्हारा रूप
तुम तब भी थे याचक और आज भी
तुम्हे बस मांगते पता हूँ .....
तुमने कभी तीन पग धरती मांग ली
कभी तुमने माँगा किसी माँ से उसके बेटे का कफ़न ।
तुम्हरे मांगने के प्रयोजन भी थे विचित्र ,'
कभी तुमने जो भी माँगा परिक्च्चा के नाम पर
अथवा माँगा दाता को उसे सुधारने के नाम पर .....
यह मांगना कितना ही इस्स्व्रीय हो ॥
लेकिन दाता के लिए हमेसा यह बहुत भरी पड़ा...
तुम हमें छद्म से दूर रहेने की सिक्चा देते आये हो
फिर क्या किये इतने सारे छद्म ....
प्रभु होने के मुखौटे तुम्हारी ही तरह येह बहुत से सत्ताधारी भी लगते है
वह भी लेने लगे है हमारा इम्तिहान ....अभी इन इम्तिहानो पर बगावत होना बाकि है।
बाकि है ।
अब मेरे प्रभु तुम कम से कम हमारा और कोई इम्तिहान न लो।
न लो .....बस.
विष्णु कान्त मिश्र।
Tuesday, May 18, 2010
श्ट्ठे शात्थ्यम शमाच्रेट
इस मग के अनुगामी को bn jaati है yeh avrodhak ।
geeta mey updesh yehi है duston का उप्छार अपेछित,
अत्त्याचारी शमन जरूरी रामायण भी इसकी पोषक ।
yehi maankr hum sbko भी अपने हैं आदर्श बदलना,
शुभता के रक्च्क बन अन्नायाई का दमन है करना ।
जो बातों मे मधु भरता है पर अंदर से हो वह बिषधर सा ,
लिखता जो सूक्तियां सलोनी कर्म करे जो नित दानव सा ।
झूठे आरोपों का प्रमादी भोला बनकर जो दिखता है ,
वर्नाछार से ही जो भ्रामक मानक जो गढ़ता हो ।
मन तन से अपनी बीमारी भाषा वाणी मे रचता हो ,
जो प्रपंच के नूतन किस्से पन्नों में भी लिख रखता हो ।
छमा पात्र वह क्यों हो सकता एइसा है सिद्धांत न कोई ,
काटेगा वह फसल खेत की जैसे जितनी है वह बोई ।
आदर्शों की परिभासा में दुस्त छमा का पात्र नहीं है ,
आतंकी को दंडित करना किसी रूप में पाप नहीं है ॥
Friday, May 14, 2010
yeh बुन्दूकेयं..... ( थेसे गुंस.)
गलती से वह एक बन्धूक रखता है ....
उससे अपनी बन्धूक पर बहूत भरोसा है ....
उससे अपने सब्द कमजोर लगते हैं ...
मैने कहा.....
सब्द गोलियों की बौछार तुमाहरी गोली की मार से कई गुना तेज हैं...
वाकई उस्सने मेरी सलाह पर गौर फ़रमाया॥
औउर उसने गोली बाद में चलाने की धमकी देता हुआ ....
गालियोंओ की बौछार चला दी .....
'' तुम लंगड़े हो ....
अभी तुम्हरी दोनों पैर नहीं हैं
स्साले tउम्हरे दोनों हाँथ भी kaat doonga....
मुझे घर से बुन्धूक लानी होगी ...
तुम्हारी नानी याद आजायेगी.....
मुझे लगा यह बुद्धिजीवी महासय क्या कर रहे है॥
यो तो सूरज को थूक क्रर डरा रहे हैं...
मैने निवेदन किया ...
यह सब्द कुछ जियादा ही तेज हैं...
या तो इनेहेय कुछ और पैना kअरू ...
अथवा इन्नेहेय भूल jआओ ...
अन्ग्रेजून के पास बंधूक और तोपें भी तो थी....
पर गाँधी यानि हमारे बाप्पू क्या कभी उन से दरे थे।
वह तो उनसे बिहा हथियार ही लादे थे।
लेकेन उसे इस time dhn की sakhta जर्रोरत है॥
पत्नी के इलाज के लिए...
घर निर्माण के लिये॥
अब वह जा चूका है॥
वह बहुत अच्छा है ॥
लेकिन दिमाग से थोडा कच्चा है।
मेरी उस्सेसे हुम्दारी है
नहीं कुछ भी उसके लिए बेदर्दी है।
उसके बिगत बुद्धिजीवी कृत्य को सलाम
उसके अंतर बैठे दर्द को प्रणाम।
इस्वर से प्रर्थन है ॥
बुद्धिजीवी को बन्धूक जीवी hओने से bचाओ वह आदमी था आदमी ही रहे ...
उसे हिन्सुक पशुओं की प्रजाति मे जानने bअचाऊ।
Tuesday, May 11, 2010
मेरा मन उस जैसा.....
दौडे यह हर उस कोने मे दिखता जिधर भी कोई खिलौना ॥
सभी खिलौने होते नस्वर PR अभिलासभिलाषाओं के VIRAT पग
चलते चलते कभी न थकते आतुर भरते हैं विशाल डग ।
इन्नेहेय रोकना नहीं सरल है किन्तु असम्भव नहीं है कुछ भी ,
वल्गाओं की डोर थाम हम रोक सकेंगे वेगित रथ भी ।
इछाओं को दमन नही बस करें नियंत्रण केवल उन पर
सब कुछ ही सामान्य रहेगा देखो इन पर थोडा चलकर ॥
Wednesday, May 5, 2010
क्या kahoon
अपनी कुटिल कृत्य वाणी का रौद्र रूप वह दिखलाता है.......
तब तब मन की कालिख उसके मुह पर brबस आ जाती है
दोहरे मापदंd की माया उसके ऊपर chha jaati है । l
saavdhan aise logon से सबको ही अब रहना होगा -
बिषधर को साथी चुन्नेनी से हमको अब बचना होगा.
Thursday, April 29, 2010
इन gaddaarron को
गद्दारों को दूध पिलाता ------
जन मन पर लाठी बरसाता-----
खुब कसाव को dhoodh pilatey
biriyani murga bhi khilatey ।
अफजल गुरू के ठाठ निराले ....
खाते देशद्रोह के निवाले ------
माधुरी गुप्त एक नया नाम है
देशद्रोह इनका भी काम है....
इनका भी अब बंदन होगा।
जेल मे नित अभिनन्दन होगा।
सेवा होगी इनकी भी नेता इनको करें सलाम...
अपना देश है कितना महान......
फआंसी होंअ नामुमकिन है॥
इनेहेय maarnaa naa मुमकिन है॥
इनके सेवा हमारी शहं ॥
अपना देश है कितना महान...
जी ...हाँ... हम सभी को अपने देश के कर्णधअरूण के इन कृत्यों... से बहुत कोफ़्त है......... सत्तापुछ...उस्सेसेय जियादा विपकच्छा ........ दोनों ही इतनी बेसरम है ....हमारी भारतमाता ने सोचह भी नहीं था। इस्वर से प्रर्थन है की इन्नेहेय सादबुद्धि दे....ताकि हमारा देश...बच सके...
हे राम......
Wednesday, April 28, 2010
आह्लाद ओर विषाद
और इशी प्रकाश में समाया है हमारे अंतर
का dard vinayash ......
yehi vinayash vismrit
kara deta है कुछ अपूर्व यादगार पल ----
ऐसे ही मै भूल गया अपनी बिटिया के गठबंधन की
पवित्र वर्ष गाँठ !
मैं भूल गया उसे अलसुबह बधाई देना।
नहीं याद रहा उसे कहना ......
अमर रहे अहिवात तुम्हारा.......
मधु मय हो दिन रात तुम्हारा......
करो सदा तुम पति की सेवा......
पति दे तुमको हर पल मेवा.....
हो संतोष सदा ही मन में -----
हो निरोग दोनों के तन में -------
बनो यशस्वी तुम दोनों ही
पाओ लछ्य सभी दोनों ही ।
मन में कलुष न किंचित ही हो
सबको प्रेम सदा तुम दो ............
नेह प्रेम सबसे ही तुम लो...........
shubkamnayen.......... papa....
Tuesday, April 27, 2010
Monday, April 26, 2010
उनके नाम .
बात यह कुछ समझ में न आई हमेयें ।
साथ मजधार मे छोड़ कुर तुम गयी
वादा यह भी समझ मे न आया हममें '
मेरे साथी बुल्लाओ हममे भी वहां
काम पूरा लिया केर बहुत kउच्च
शादी बेटी की bhi है sirf होनी अभी s
बेटे की भी है सिर्फ होनी अभी ।
mआय आकेला ना रूह सकूँगा एहन
हर पल हर चन में तुम हेर जहन्न मे हो तुम
आसमा मे हो तुम इस धरती पे भी तुम ।
माएं भी हू तुम और वह भी है तुम । ॥
किसे छितिज मे खोज रहा हूँ
माएं साम को भगवंत ऋ के पास जाकर उनके लिए प्रर्थनअ करता था। उसी रत को साम श्रीमती सिहं आई थी ...उनको वह पहचान नहीं पा रही ... थी। ........
मेरी सबसे प्यारी .....अपनी पत्नी दो बेयियों की माँ ......अब नही है यह माएं कासे कहूँ... वह हर समय मेरे साथ रहती है ....लडती है...झगड्थी है......दुलराती है... मेरे खाने ....के लिए जैसे तब वह चिंतित रहती थी अब भी है । वह कभी मुझको बहुत काहित tही अब कुत्च नहीं कहती है.........तुम जहाँ भी हो कुश रहो.......येही उनकी कामना है । बस आज इतना ही।
Thursday, April 22, 2010
Tuesday, April 20, 2010
स्पंदन कुत्च aise ही........
नेह निमंत्रण जितने पाए उनमे कोई सार नहीं था ॥
मन वीणा के तार सुनहरे ,
हमने छेड़े स्वर आने को ।
देखा स्वप्न सुनहरे कल का
तारे नभ से भर लाने को ॥
उद्बोधन जितने मीठे थे उतना प्यार दुलार नहीं था ।
नेह निमंत्रण जितने पाए उनमे कोई सार नहीं था ॥
Monday, April 19, 2010
भावनाएं और यथार्थ क्या स्वार्थ के पूरक हैं
बस इतना ही...अपने को ....
Tuesday, April 13, 2010
OUR EXPECTATION & FRUSTRATIN .
i HAVE SAID EVERYTHING ॥ HOPE THAT READERS WILL CONSIDER TO FOLLOW....
VANCHHNAYEN सभी Kओ नहीं मिलती है
कल्पनाये मगर रहती जीवित सदा
दे विधाता नहीं Lअच्य केवल येही कर्म करते रहें हम यो ही सदा।
Friday, April 9, 2010
in dono ko...
मेरी बेटी , कुछ-कुछ पागल सी ,अपनी सरलता के साथ ,मासूम प्रतिमा सी लगती है।है वह बहुत कुछ हठीली जिद्दी सी ,पर बातों के अपनत्व से ,मात्र प्रतिमूर्ति सी लगती हैवह खुश रहना चाहती है ,अपने घर की दुनिया में ,खिलौनों के छोटे संसार में।बाहर निकलने से बहुत घबराती है ,बड़ों की बड़ी दुनिया में ,परिचित-अजनबी चेहरों के बीच ,वह अचानक सहम सी जाती है ,शायद वह अकेली हो जाती है।खिलौनों के संग खेल में ,अक्सर जिद करती है अजीब सी ,साथ मेरे बात करो , दौड़ो-भागो ,खिलौनों से ऐसा वह कहती है।पर कोई भी बात नहीं करता ,मौन और गहरा जाता है ,मेरी बेटी शायद गुस्सा हो जाती है ,हर खिलौना तोड़ देना चाहती है ,और थोड़ी देर बाद ,खिलौनों को पुनः सहेज कर ,बिखराव मिटा देना चाहती है ,अक्सर यह घटना दोहराई जाती है।यह देखकर मैं कहने लगता हूं ,बेटे , ऐसा कभी होता नहीं ,अच्छा अब हंस दो तुम ,तू मुस्कराती अच्छी लगती है।मेरी बेटी समझने की कोशिश में ,और उलझनों में डूबी सी ,ऐसा सचमुच नहीं होता है ?यह प्रश्न मुझसे पूछती है ,मैं स्वयं उलझ जाता हूं ,उत्तर तलाशने लगता हू।अच्छा , मुझको गुड़िया बना दो न ;वह स्वयं उत्तर तलाश लेती है।उसकी उलझनों के आगे ,समझदारी व्यर्थ प्रतीत होती है।उसको गोद में लेकर थपकी देकर ,सुला देना चाहता हूं।शायद जागने पर वह, यह यक्ष प्रश्न भूल जाए ,और हंसती-खेलती-मुस्कराती रहे सदा , मेरी बेटी।। ( this is not written by me ....experienced )
Wednesday, April 7, 2010
apni badki bitiya se ...
I have no words to begin blog which is required to be posted by me .. I m continuously thinking and thinking since yesterda... I quiestion ...to Almighty ... what is the extent of patience... what is the ethic of survival . what are the meaning of shubh and ashubh.. why those who are not doing holy things they are getting everything and contradactory who are doing the all act of kindness they are being crushed. History shows that Bhagwan Rama , Harishchra etc had done every thing as per the expectation of Vedas , Shruti and religion but all of them have been tested . Those were very great ... we people are related with this bhautik jagat ....and bearing no cosmic power even then we are being made the target of test. .....My wife expired...I remained silent ...I tried to ask these quetion which have also been replied by the almighty but now my children are being tested . I can only prey to God please exempt them from your hard test. please rain ur kindness.. Destiny is nothing except the desire of God. Desires of God probably made on the basis of assessment of act of human being ....specially who are living on earth. In this way i tried to recall that I have did nothing which may be treted immoral. Ihave never crussed any body .. contadractory i have tried to facilate all the needy person as per my capacity...Then why My Great God u r testing my innocent children...why are u not helping .. o...God ...please rain ur kindness.
vk.
Sunday, April 4, 2010
स्वामी रामदेव एवं उनका अभियान
स्वामी रामदेव ,युग ki तमसमई रात्रि के उदीयमान सूर्य है। bह्रास्ताछार , दमन , annayay, mahilasoshan aadi ki kuruitiyon ka patachep karney ki ekmatra sambhavanayen unihi me dekhi ja sakti hai. aisey byakti ka rajneeti meyn pravesh nischaya hi swagat yogya hai. unka videsho meyn jama dhan ke vapsee ki ghosana yadi vastava mey sahi sabit hogi to yeh des ekbar phir soney ki chidiya kahlaney se koi nahi rok sakta hai.
Thursday, April 1, 2010
लिख दिया है कुछ भी यों ही ब्लॉग लिखते लिखते
कुछ प्रतिबंध भी होते ऐसे जिन से भगना बहुत कठिन है ।
मन उतावला जब होता है बाधाएं तब छोटी लगती ,
तर्क वितर्क के गठबंधन में सीमायें सब छोटी लगती
घोस गूंजना विद्रोही का इस समाज में बहुत कठिन है ॥
नीतिशास्त्र की रांह में चलकर कहीं पे थकना बहुत कठिन है।
बस इतना ही ...........
Wednesday, March 31, 2010
एक कविता ऐसे ही......
हर छहं यानि --
समय का एक अंस
जिसे हम कह सकते हैं ===
परमेश्वर का पर्याय
अथवा hamey diya gaya
Thursday, March 25, 2010
shadow of memory
Now..... further I am not able to write.
काल चक्र की परिधि मे ,
अस्म्रित्यों की ब्यास रेखाएं ,
जब कटती हैं खुदी को =
तब छोड़ जाती हैं
समान्तर रेखाओं के लिए
स्थान ---------
रिक्तता के लिए रिक्तता के लिए=== बस
कुछ ऐसा ही है हमारे पास हमारे पास.......
विष्णु कान्त मिश्र
Wednesday, March 24, 2010
walk of zeal
I am knowing him since 1989. He is 80 yrs young man.He is blind. Every year he used to travel more than 15thousand kilometeres journey of inda. He was retired from Govt School as a Music Teacher.He is running his music school for blinds and also using to teach them Braille . He is assisted by a 16 years poor girl . Today he came in after noon . when he knowcked the doors I felt upset why he came . Unwillingly i welcomed him . He informed me that i reached lucknow at 7 a.m till that time i am travelling in lucknow and met 14 people known by him and collected donation for his institution . he informed there is 14 boys and 12 girls r in tht institution. i felt guilty to had non welcoming spirti,. i want to solute him for the dedication of his noble cause. I can appeal to every one try to learn something from him .
Thursday, March 18, 2010
ASPANDAN...IS MAN KE....
KITNEY ANANT IS PARVAT PAR
SUBD ARTH KE MELEY ME ,
YEH ASPANDAN KAISE LUUN BHAR.
KHUSIYAN ANANT DUKH BHI ANANT,
DONO KE MADHYA NA KOI GHAR.
YAYAVAR SA GHOM RAHA
NA DHIKTI KOI RAHN PRAKHAR. .........
READERS' COMMENTS ARE INVITED.
RAY OF PLEASURE.
GOD BLESS THEM.
EK GAURAVANVIT PAPA..PITA.
Tuesday, March 16, 2010
NAMSTASYA NAMSTASY NAMSTAYA NAMO NAMAH
Thursday, March 11, 2010
aspandan
hashaney का तो प्रसन nahi tha par vilap bhi kar na paya,
Bhook nahi thi par bhojan tha jisko maineyn kha na paya ,
दर्द के वीणा तार से निकला अंजुरी भर अस्पन्दन अँजुर भर अस्पन्दन अ।
कल के व्यथा लेख मेँ हमने दर्द का दुस्तावेज भरा था ,
दर्द निवारक डाक्टर का कच्छा चिठा हमने खोला था ,
सरकारी ट्रौमा सेण्टर का नाटक की मजबूरी का हमने बस उल्लेख किया था
मन में जिससे उपजा क्रंदन।
दर्द के वीणा तार से निकले मेरे अंजुरी भर अस्पन्दन। मेरे अंजुरी भर अस्पन्दन
Wednesday, March 10, 2010
darkest dawn of pain
------------- Now it was 3PM..on my enquiry it was informed that ventilatore is not working there . wehave been advised to get the patient be transferred to KGMC t r auma centra. At that time we had no right to express my displeasure to the Doctors. They have provided us an Ambulance from which we reached Trauma Center. there had again started pathological testing etc. they have provided a huge list of medicine etc . at 7PM after only 4 hours of reach . it is need less to say that my Bhanja who was him self a influncial officer of the center hes attempt was given a such result that Doctors was ready to examine ...... Crying was still on . Operation could began at 9-30 pm . I would like to add here that Anesthesia people had delayed the operation by 2 hours due to dispute between Doctors and anesthesia people . those people came within a very short of time of only 2 hours because they were also know to my bhanja otherwise they could reach there after 11 in night. Thnks to God. I could not reach near the operation theatre due to my disablility. I could remain sit on entrace doors ...my relative, brother, Bahnoi vinod, Rinku, rajkumar , viswanath and office coleagues remain there . I had only an option to make JAP of mahmritunjan atthe door of truma center. .......therewere chain of patients comming i was been shocked to see the situation . .. I would like to mention here one more happening .......One rekshaw puller was badly injurred by a jeep who was brought there alongwith his family and newly married his wife. some young person approached the Doctor. he has given a long list of medicine to purchase ...that younman came back ... and demanded the money from remaining person of that huge gathering . all of those person collected the coines and notes ....all collection could not reach upto the numbers of 300 then his newly wife shown his GATHRI NUMA RUmal .... I could recollect she had firmly declare that she will fulfil the requirement to save her husbnd... but shocked ... her total echequr was only 176 rupees. that was much lesser to fulfill the demand of chemis for medicines cost Rs. 8000/- in those circumstances all became silent ...there was pin drop silence among them . ...At that time my heart was saying that i should give them alll the 8000 as i had 40000 with me .....but i could not stop me to give 500 ... further position i could not know what happend .
My wife's opperation could completed by 3.30 a.m. OF 11TH MARCH 2008.
i REMAIN ONLY SIT THERE.. i COULD DO NOTHING . i HAVE NOW TAKEN THREE GLASS OF WATER AND NOW SOME RELATIVE BRING THE TEA. i HAVE INFORMED THE POSITION TO PRERANA. KAPIL AND PRERANA IS COMING .i HAD TO WAIT . MEAWHILE SAFAI WALA CAME AND THREE TIMES SCOLDED ME TO NOT REMAIN SIT IN THE FRONT OF HOSPITAL . .......... SECURITY PERSON HAS ALSO 5 TIMES SCOLDED ME. I REMAIN SILENT AND HUMBLE....AT LEAST WHEN AGAIN I WAS SCOLDED i HAVE TO PAY 100 TO THEM THEN I WAS ALLOWED TO REMAIN SIT THERE.
REMAINING WILL BE WRITTEN .. NOW I COULD NOT WRITE FURTHER BECAUSE THOSE BITTER MEMORIES MAKE ME SENTIMENTAL .
DEDICATED TO BELOVED LATE MALTI..
Tuesday, March 9, 2010
yes ...this situation certainly is about to come if we will not stop the building of multystory buidling on a cost of destoying the trees and agricultural land.... there will be starvation.... we must prepare ourselves to welcom the said situation ....
vishnu kant mishra.