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Thursday, December 16, 2010

भारती के भाव विह्वल आंसुओ की याचना है


तुम कलम से विरह के अब गीत लिखना छोड़ दो

हास्य की यह रितु नही है एक केवल कामना है ,

तुम चरण चारण की अपनी बात करना छोड़ दो.

भ्रष्ट होते तन्त्र की ब्यथा पर अब कुछ लिखो ,

दर्द से होती तड़प की वेदना पर कुछ लिखो ,

चीर खोती द्रोपदी की नग्नता पर कुछ लिखो..

आतंक भ्रस्टाचार की इन गठरियों को खोल दो..

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