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Tuesday, December 14, 2010

tmanna..

तमन्ना कैसे करिये मंजिलों की , हो जब पैरों में बेडी मरहलों की .
मोहब्बत अपनी भी परवान चढ़ती , कमी शायद थी हममे हौसलों की .
जमी ज्यों ज्यों सिमटती जा रही है लकीरें बढ़ रही हैं फासलों की .
हमेशा सींचती रहती है कांटे सियासत बात करती है गुलों की .
अदालत जब हो मरहूने सियासत कहाँ तक कद्र कीजे फैसलों की .
जुनूं फिर आजिमे दस्ते सफर है इलाही लाज रखना आंवलों की
सिफ़ा होगी हटो ए चारा साजों हवा आने दो माँ के आंचलो की .

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