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Tuesday, May 25, 2010

उनको जो नहीं है मेरे साथ

भाव आते रहे भाव जाते रहे ,
हम तुम्हारे बिना क्यों यहाँ रह गए ।
करता निर्माण हूँ इक घरौंदे का फिर ,
ईट गार्रों में आंसू भी है मिल गए।
सोचता हूँ की दीवार वह कौन सी ,
स्वप्न जिसमे tumhaarey धरे रह गए ।
खंड भू का तुम्हरा है अन्दर मेरे ,
चित्र जिस पर तुम्हारे बने रह गए।
गृह के हर द्वार में बजके पायल तेरी ,
मेरे कानो में स्वर गूंजते रह गये .
यह तुम्हारा तुम्ही को समर्पित प्रिये ,
कल्पना लोक में स्वप्न सजते रहे ।
होगा पूरा नहीं यह तुम्हारे बिना ,
मेरे साथी बताओ कहाँ तुम गए ।
आना होगा माये जब भी बुलाऊं तुम्हे ,
तार वीणा के उर में सजाते रहे.

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