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Tuesday, April 20, 2010

स्पंदन कुत्च aise ही........

संबोधन जितने सच्चे थे उतना सच्चा प्यार नहीं था ।
नेह निमंत्रण जितने पाए उनमे कोई सार नहीं था ॥
मन वीणा के तार सुनहरे ,
हमने छेड़े स्वर आने को ।
देखा स्वप्न सुनहरे कल का
तारे नभ से भर लाने को ॥
उद्बोधन जितने मीठे थे उतना प्यार दुलार नहीं था ।
नेह निमंत्रण जितने पाए उनमे कोई सार नहीं था ॥

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